हल्द्वानी:
जल्दी अमीर बनने के डिजिटल जाल में फंसकर एक और ज़िंदगी बुझ गई। 21 साल की एक छात्रा, जो पहले मोबाइल पर लूडो गेम में मामूली रकम जीतकर खुश हुई थी, उसी गेम के जुए में लाखों गंवाकर आत्मग्लानि में डूब गई — और आखिरकार फांसी लगाकर जान दे दी। मरने से पहले पिता के नाम एक चिट्ठी छोड़ी — जिसमें माफ़ी थी, शर्म थी… और भारी मन से लिखा गया अंतिम अलविदा।
घटना उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर की है। स्पैरो कॉलोनी निवासी छात्रा एमबीपीजी कॉलेज में बीएससी द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी। शुक्रवार को वह घर में मां और छोटे भाई के साथ थी। दोपहर में मां और भाई बाजार चले गए, और इसी दौरान उसने कमरे में फांसी लगा ली।
जब परिजन लौटे तो दरवाजा अंदर से बंद मिला। दरवाजा तोड़ने पर वह फंदे से लटकी मिली। आनन-फानन में पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस ने शव को सुशीला तिवारी अस्पताल भिजवाया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
सुसाइड नोट में लिखा— “अब और नहीं सहा जाता”
पुलिस को छात्रा के कमरे से जो सुसाइड नोट मिला, उसमें लिखा है “मैंने लूडो गेम में आपके चार-पांच लाख रुपये डुबा दिए। पहले थोड़ा-थोड़ा जीती थी, फिर सब कुछ हार गई। अब खुद से नफरत हो गई है। पापा, मुझे माफ कर देना। अब और नहीं सहा जाता।” छात्रा के पिता अल्मोड़ा जेल पुलिस में तैनात हैं। बेटी की मौत की खबर से परिवार सदमे में है। कोतवाली प्रभारी राजेश यादव ने बताया कि शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। सुसाइड नोट को जब्त कर लिया गया है। पूरे मामले की जांच की जा रही है।
गेम ही नहीं, अब ऑनलाइन फ्रॉड भी ले रहे जानें
ऑनलाइन लूडो जैसे गेम अब सिर्फ टाइम पास नहीं रहे, ये असल में जुआ और लालच का रूप ले चुके हैं।
आजकल “गेम खेलो, पैसे कमाओ”, “पैसे दोगुना करो” जैसी स्कीमों के नाम पर बच्चों और युवाओं को फंसाया जा रहा है। ये प्लेटफॉर्म शुरुआत में कुछ जीत दिलाकर लालच बढ़ाते हैं और फिर लाखों गंवा बैठने पर कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। यह मामला भी ऐसे ही डिजिटल फंदे में फंसी एक छात्रा की जान का है।
ये सिर्फ एक मौत नहीं, समाज के लिए चेतावनी है
इस घटना ने फिर दिखा दिया कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हमारी लापरवाही अब जानलेवा बनती जा रही है। बच्चे हार से नहीं मर रहे, अकेलेपन, अवसाद, और हमारे संवाद की कमी से मर रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी घटनाएं दिखाती हैं कि बच्चों से सिर्फ मार्क्स नहीं, मन की बात भी पूछें।
जरूरी है इन बातों पर नज़र रखना
- बच्चों के मोबाइल और मानसिक हालात पर नजर रखें
- ऑनलाइन गेम्स और ऐप्स पर पैसे लगाने से पहले उनकी सच्चाई जानें
- परिवार में खुला संवाद बनाएं
- मानसिक तनाव के संकेत मिलें तो चुप न रहें — बात करें
ये घटना सिर्फ एक खबर नहीं, एक आईना है — जिसमें हमें अपनी चुप्पी, भरोसे और निगरानी की कमी साफ दिखाई देती है।
अब भी समय है, जाग जाइए… क्योंकि अगली बार यह हादसा आपके दरवाज़े पर भी दस्तक दे सकता है।