आध्यात्मिक जागृति के रूप में मनाया गया दादी जानकी की तीसरी पुण्य तिथि

  • दादी की जानकी की श्रद्धांजलि सभा में उमड़े लोग, उनके कमरें में भी ध्यान साधना

आबू रोड, 27 मार्च, निसं। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की पूर्व मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी जानकी की तीसरी पुण्य तिथि आध्यात्मिक जागृति के रूप में मनायी गयी। इस अवसर पर प्रात: काल से ही ध्यान साधना के बाद प्रात: आठ बजे दादी के समाधि स्थल शक्ति स्तम्भ पर संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी मोहिनी दीदी, बीके जयन्ति, संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी समेत कई वरिष्ठ पदाधिकारियों ने कुछ समय मौन रहकर अपनी पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।

कार्यक्रम में संस्था के मीडिया प्रभाग के अध्यक्ष बीके करूणा, ब्रह्माकुमारीज संस्थान के कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय, ज्ञानामृत पत्रिका के प्रधान सम्पादक बीके आत्म प्रकाश, बीके सूर्य, बीके डॉ सतीष गुप्ता, बीके डा बनारसी समेत वरिष्ठ भाईयों ने भी दादी के समाधि स्थल पर जाकर अपनी पुष्पांजलि दी। इस अवसर पर संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी ने कहा कि दादी का जीवन हमेशा सही मानवता की सेवा में रहा। उनके संकल्प और कर्मों में हमेशा ही दिव्यता रही। देश विदेश की हर आत्मा को उन्होंने ज्ञान और योग से सीचा।

ब्रह्माकुमारीज संस्थान के अतिरिक्त महासचिव बीके निर्वेर ने कहा कि दादी पूरे विश्व की दादी थी। उनके पास जो भी आता था वो दादी का हो जाता था। वो जिधर भी जाती उधर लोग उनके पीछे हो चलते थे। कार्यक्रम में संस्थान की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयेागिनी बीके मोहिनी ने कहा कि दादी का संकल्प इतना तीव्र और शक्तिशाली था कि वे जो चाहती थी हो जाता था। उन्होंने उनके साथ के कई संस्मरण भी सुनायें। यूरोपियन सेवाकेन्द्रों की निदेशिका तथा अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके जयन्ति ने कहा कि दादी के साथ का जीवन एक अनमोल यादों में समा गया है। उनके साथ हमारा ऐसा सम्बन्ध रहा कि आज भी उनकी यादें हर पल साथ रहती है।

संस्थान की संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी ने कहा कि दादी एक बीता हुआ कल हो गया परन्तु उनका जीवन आदर्श रहा है। उनके पदचिन्हों पर चलकर मनुष्य अपना जीवन महान बना सकता है। उनके हर कर्म दिव्य और अलौकिक थे। उन्होंने कभी भी जीवन में झूठ नहीं बोला। इसलिए वे प्रकृतिजीत की तरह थी। इसके बाद संस्थान के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों ने दादी के कमरे तथा उनके ध्यान कक्ष में कुछ समय जाकर ध्यान साधना कर पुष्पांजलि दी। तथा कतार बद्ध होकर बड़ी संख्या में लोगों ने दादी के स्तम्भ पर अपनी पुष्पांजलि दी।

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