देहरादून – नदी पारिस्थितिक तंत्र के सिकुड़ने और क्षरण के कारण ताजे जल संसाधन घट रहे हैं और बढ़ता जल संकट पर्यावरण, संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास से संबंधित राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा बनता जा रहा है। तेरह नदियाँ सामूहिक रूप से 18,90,110 वर्ग किमी के कुल बेसिन क्षेत्र को आच्छादित करती हैं जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 57.45ः का प्रतिनिधित्व करता है। परियोजना के अंतर्गत निरूपित नदी परिदृश्यों के भीतर 202 सहायक नदियों सहित 13 नदियों की लंबाई 42,830 किमी है।नदियों के साथ-साथ उनकी सहायक नदियों को प्राकृतिक भूदृश्य, कृषि भूदृश्य और शहरी भूदृश्य के तहत वानिकी अंतःक्षेपों के लिए प्रस्तावित किया गया है। काष्ठ की प्रजातियों, औषधीय पौधों, घास, झाड़ियों और ईंधन, चारे और फलों के पेड़ों सहित वानिकी वृक्षारोपण के विभिन्न मॉडलों का उद्देश्य पानी को बढ़ाना, भूजल पुनर्भरण और क्षरण को रोकना है। विभिन्न भूदृश्यों में प्रस्तावित वानिकी अंतःक्षेप और सहायक गतिविधियों के लिए बनाई गई सभी 13 डीपीआर में कुल 667 उपचार और वृक्षारोपण मॉडल प्रस्तावित हैं। प्राकृतिक भूदृश्य के लिए 283 उपचार मॉडल, कृषि भूदृश्य में 97 उपचार मॉडल और शहरी भूदृश्य में 116 उपचार मॉडल प्रस्तावित किए गए हैं।
प्रत्येक डीपीआर में निरूपित नदी परिदृश्य का विस्तृत भू-स्थानिक विश्लेषण, नदी पर्यावरण पर विस्तृत समीक्षा, वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार कारक और व्यापक परामर्श प्रक्रिया के आधार पर वानिकी अंतःक्षेप और अन्य संरक्षण उपाय प्रस्तावित किये गए जिसके लिए क्षेत्र सत्यापन के साथ सुदूर संवेदन और जीआईएस तकनीकों का उपयोग करके क्षेत्रों की प्राथमिकता तय की गयी और प्रत्येक निरूपित नदी परिदृश्य में प्राकृतिक, कृषि और शहरी भूदृश्यों के लिए विभिन्न उपचार मॉडल का निर्माण किया गया । प्रत्येक डीपीआर में वॉल्यूम और सिंहावलोकन के रूप में डीपीआर का सारांश शामिल है। इसके अतिरिक्त, संक्षिप्त आलेख के रूप में सभी 13 डीपीआर का एक सिंहावलोकन भी तैयार किया गया है।डीपीआर, वन संरक्षण, वनीकरण, जलग्रहण उपचार, पारिस्थितिक बहाली, नमी संरक्षण, आजीविका सुधार, आय सृजन, नदी के किनारों को विकसित करके पारि पर्यटन, इको-पार्कों पारिस्थितिकी पर्यटन और जनता के बीच जागरूकता बढ़ने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अनुसंधान और जाँच को भी एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।तेरह डीपीआर का प्रस्तावित संचयी बजट परिव्यय रु. 19,342.62 करोड़ है। डीपीआर को राज्य वन विभागों को नोडल विभाग के रूप में कार्यान्वित किये जाने का प्रस्ताव है, राज्यों में अन्य संरेखित विभागों की योजनाओं के अभिसरण के साथ डीपीआर में प्रस्तावित गतिविधियों को भारत सरकार से वित्त पोषण सहायता के माध्यम से निष्पादित किए जाने की उम्मीद है। डीपीआर में राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर संचालन और कार्यकारी समितियों का भी प्रस्ताव किया गया है। यह भी उम्मीद है कि 13 डीपीआर में प्रावधान के अनुसार नियोजित गतिविधियों के माध्यम से 344 मिलियन मानव-दिवस का रोजगार सृजित होगा।
राष्ट्रीय वनीकरण एवं पर्यावरण विकास बोर्ड, (एमओईएफ और सीसी) द्वारा वित्त पोषित और भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, (भा.वा.अ.शि.प.) देहरादून द्वारा तैयार वानिकी अंतःक्षेपों के माध्यम से तेरह प्रमुख नदियों नामतः झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, यमुना, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी के कायाकल्प पर डीपीआर को भूपेंद्र यादव, माननीय मंत्री, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन, द्वारा नई दिल्ली में विमोचित किया गया।इस अवसर पर गजेंद्र सिंह शेखावत मंत्री, जल शक्ति मंत्रालय; अश्विनी कुमार चौबे राज्य मंत्री, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; लीना नंदन, सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; सी.पी. गोयल, महानिदेशक वन एवं विशेष सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; अरुण सिंह रावत, महानिदेशक, (भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, देहरादून), प्रेम कुमार झा, महानिरीक्षक, एनएईबी और एस.डी. शर्मा, पीसीसीएफ एवं पूर्व उप. महानिदेशक (अनुसंधान), आर.के. डोगरा, उपमहानिदेशक (अनुसंधान), भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद एवं भा.वा.अ.शि.प. के अधिकारी भी उपस्थित थे। विभिन्न राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी और भा.वा.अ.शि.प. संस्थानों के निदेशक टीम के सदस्यों के साथ वर्चुअल माध्यम से समारोह में शामिल हुए।