बजरंग सेतु आधुनिकता और आस्था का संगम
ऋषिकेश में गंगा नदी पर बन रहा बजरंग सेतु अभी निर्माणाधीन है, लेकिन इसे लेकर स्थानीय लोगों और पर्यटकों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। यह देश का पहला ग्लास वॉकवे सस्पेंशन ब्रिज होगा, जो आध्यात्मिकता और आधुनिक इंजीनियरिंग का अद्भुत संगम प्रस्तुत करेगा।
यह कांच का पुल लगभग सौ वर्ष पुराने प्रसिद्ध लक्ष्मण झूला की जगह ले रहा है। पुल से गुजरते हुए श्रद्धालु और पर्यटक मां गंगा के निर्मल प्रवाह का अद्वितीय दर्शन कर सकेंगे। बजरंग सेतु के निर्माण के साथ ऋषिकेश में एक नए युग की शुरुआत हो रही है।
लक्ष्मण झूला 1929 में बनाया गया था और यह ऋषिकेश की पर्यटन एवं धार्मिक पहचान का केंद्र रहा है। इस लोहे के झूला पुल ने वर्षों तक तपोवन और जोंक गांवों को जोड़े रखा। किंवदंती के अनुसार, भगवान लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सी से गंगा पार की थी।
68 करोड़ 86 लाख 20 हजार रुपये की लागत से बन रहे 132.30 मीटर लंबे वैकल्पिक बजरंग सेतु का निर्माण कार्य लोक निर्माण विभाग, नरेंद्रनगर द्वारा किया जा रहा है। इसे दिसंबर 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन कार्य अब तक पूर्ण नहीं हो सका है। फिलहाल पेंटिंग और अंतिम निर्माण कार्य जारी है तथा उम्मीद है कि जल्द ही यह सेतु श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए खुल जाएगा।
लक्ष्मण झूला पुल को सुरक्षा कारणों से 13 जुलाई 2019 को बंद कर दिया गया था। इसके बाद राम झूला और जानकी सेतु पर आवागमन बढ़ गया, जिससे स्थानीय लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। बजरंग सेतु बनने से तपोवन क्षेत्र के लोग, श्रद्धालु और पर्यटक सीधे लक्ष्मण झूला क्षेत्र तक पहुंच सकेंगे।
बजरंग सेतु की लंबाई 132.5 मीटर और चौड़ाई 8 मीटर है। इसके बीच में हल्के वाहनों के लिए दोतरफा लेन होगी, जबकि दोनों ओर पारदर्शी शीशे से बने पैदल पथ 3.5 इंच मोटे मजबूत कांच के हैं, जिनसे नीचे गंगा का मनोरम दृश्य दिखाई देगा। यह शीशा उच्च गुणवत्ता का है और मौसम की हर स्थिति का सामना कर सकता है। पुल को 150 साल तक सुरक्षित रहने योग्य बनाया जा रहा है।
सेतु के दोनों टावरों को केदारनाथ मंदिर की शैली में डिजाइन किया गया है, जिससे यह आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन गया है। बजरंग सेतु न केवल इंजीनियरिंग की दृष्टि से एक उत्कृष्ट उपलब्धि है, बल्कि यह ऋषिकेश में पर्यटन और धार्मिक यात्राओं को नई दिशा देगा।






