महाराष्ट में सरकार के गठन में जिस तरह से शिवसेना ने एन.सी.पी-कांग्रेस से हाथ मिला कर अपनी मुख्यमंत्री बनने की आकांक्षा को पूर्ण किया है। यह उसके लिए सुसाइड करने जैसा है। यह मैंने अपने पूर्व ब्लॉग में लिखा है।
शिवसेना की पहचान हमेशा एक हिंदूवादी राजनीतिक पार्टी के रूप से की जाती रही है और यहां तक का सफर पूर्ण करने में उनका यही मुख्य आधार रहा। लेकिन शिवसेना के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सलाहकार संजय रावत ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा।
करीब 15 दिन का समय होने को आया किंतु अभी तक मंत्रियों के विभागों तक का निर्णय नहीं हो पाया है, काम शुरू करने की तो बात ही अलग है। इससे मुख्य रूप से वहां की जनता का ही नुकसान हुआ है।
प्रदेश में विकास योजनाओं पर ब्रेक लग गया है वहीं, नई योजनाओं पर काम कब प्रारंभ होगा यह भी सोचने वाली बात है। शिवसेना सत्ता की मलाई के चक्कर में फंसकर अपनी मूल भावना को भूल बैठी थी। वहीं, शिवसेना ने पहले ही स्पष्ट किया है कि यह गठबंधन लंबे समय तक चले चलने वाला है।
इसी कड़ी में 3 दिन पहले नागरिकता बिल संशोधन से पहले लोकसभा में शिवसेना ने सत्ताधारी दल बीजेपी का समर्थन किया किंतु जैसे ही गठबंधन वाली पार्टियों ने दबाव बनाया एक दिन बाद ही सुर बदल गए और राज्यसभा में वोटिंग के पहले ही शिवसेना के सदस्य चले गए।
शिवसेना को सांप-छछूंदर की स्थिति का घोतक है अब देखना यह है कि शिवसेना यह कांटो भरा ताज कितने दिन संभाले रखती है। क्योंकि सावरकर पर भी कांग्रेस के राहुल गांधी के बयान पर भी संग्राम छिड़ा हुआ है ऐसे में शिवसेना कांग्रेस के खिलाफ कैसा स्टैंड अपनाते हैं आने वाले दिनों में पता लग सकेगा।