ज्ञात रहे कि विगत कुछ समय से सूचना एवं लोक संपर्क विभाग, उत्तराखंड जो कि सीधे तौर मुख्यमंत्री के नियंत्रण में है, के द्वारा पत्रकारों के खिलाफ मनमानी एवं पक्षपात पूर्ण गतिविधियां हो रही है एवं इनके विरुद्ध कुछ पत्रकार संगठन समय-समय पर अपना पक्ष भी रखते आ रहे हैं किंतु विभाग द्वारा इन पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है, वही कुछ एक चाटुकार लोगों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सभी नियमों को ताक पर रखा जा रहा है। इसी श्रेणी में गत विज्ञापन समिति बैठक 2017-18 में विभाग द्वारा प्रिंट मीडिया नियमावली को दरकिनार कर तत्कालीन महानिदेशक सूचना ने उनके कार्यालय आदेश सं 10/ सूचना एवं लोक संपर्क विभाग (विज्ञा/42/2016 दिनांक 09 जनवरी, 2018 के माध्यम से इकतरफा आदेश पारित कर दिया कि जिन समाचार पत्रों में स्वामित्व परिवर्तन किया जा रहा है उनको नए समाचार पत्रों की श्रेणी में मानते हुए विभागीय सूचीबद्धता हेतु 18 माह का समय निर्धारित कर दिया गया।
प्रकरण पर सर्वप्रथम ऑल इंडिया संभल न्यूज़ पेपर एसोसिएशन (आइसना) उत्तराखंड ने अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर सभी तथ्य प्रस्तुत करते हुए इस आधार पर निरस्तीकरण की मांग की है कि न तो यह प्रावधान आर.एन.आई नई दिल्ली में है और न ही डी.ए.वी.पी में। इन सबसे ऊपर नियमावली में भी इस संबंध में कुछ भी नहीं किंतु सूचना विभाग ने इसको ठुकरा दिया और आखिरकार प्रकरण भारतीय प्रेस परिषद, दिल्ली में गया जहां पर प्रकरण पर सुनवाई हुई किंतु सूचना विभाग द्वारा भ्रामक तथ्य रखकर प्रकरण को डिस्मिस करा दिया। प्रेस परिषद ने जब निर्णय पारित किया तो निर्णय की प्रति आइसना को भी प्राप्त हुई एवं निर्णय में दिए गए भ्रामक तथ्यों को आधार बनाकर आइसना ने अपील दायर की। अपील में सूचना विभाग की अनियमितताओं का भी उल्लेख किया गया, जिसको भारतीय प्रेस परिषद नई दिल्ली ने उपयुक्त आधार मानते हुए अपील स्वीकृत कर उनके पत्रांक केस सं 369/2020/03 दिनांक 23.12.2020 के माध्यम से नोटिस भेजकर महानिदेशक सूचना को 2 सप्ताह का समय प्रदान करते हुए स्पष्टीकरण/टिप्पणी की वांछना की है एवं कार्यवाही न होने के अभाव में जांच समिति उचित आदेश पारित करने के लिए स्वतंत्र होगी।