करोड़ों लेकर फरार हुआ बिल्डर शाश्वत, अफसरों की कॉलोनी ‘ऊषा’ को लेकर उठे गंभीर सवाल

दून का जो बिल्डर शाश्वत गर्ग 17 अक्टूबर से परिवार सहित गायब है, उसके बारे में अब कई तरह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। बिल्डर की संदिग्ध गुमशुदगी के बाद अब उसके मसूरी रोड पर आर्केडिया हिलॉक्स नाम के ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपये के फर्जीवाड़े के आरोप लगे हैं। यह आरोप 21 फ्लैटों के आवंटन में गड़बड़ी से जुड़े हैं। इससे पहले बिल्डर के देहरादून में थानो रोड पर इंपीरियल वैली (प्लॉटेड डेवलपमेंट) में ही गड़बड़ी की आशंका थी। जिसके बाद रेरा ने यहां प्लॉट की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी थी। लेकिन, यहां तो आर्केडिया हिलॉक्स में फर्जीवाड़े का नया खुलासा हो गया।

यही नहीं, इस प्रोजेक्ट के फर्जीवाड़े में बिल्डर शाश्वत और उनके परिजनों के साथ ही बैंक अधिकारियों/वित्तीय संस्थाओं की संलिप्तता भी सामने आ रही है। इस मामले में आर्केडिया हिलॉक्स की अंतरिम रेजिडेंट्स सोसाइटी के अध्यक्ष की तहरीर पर राजपुर थाना पुलिस ने शाश्वत गर्ग, उनकी पत्नी साक्षी, पिता प्रवीण गर्ग, मां अंजली गर्ग व शाश्वत के दो सालों समेत बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया है। गंभीर यह कि एफआईआर में बिल्डर का जो पता दर्ज किया गया है, उसमें नाम आईएएस, आईपीएस, आईएफएस आदि की ऊषा कॉलोनी का दिया गया है।

अंतरिम सोसाइटी प्रबंधन समिति आर्किडिया हिलॉक्स के अध्यक्ष विवेक एस राज ने राजपुर थाने में शिकायत देकर बताया कि मसूरी रोड पर एक अपार्टमेंट का निर्माण किया जा रहा है। अपार्टमेंट का निर्माण अतुल गर्ग निवासी राजनगर, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) की जमीन पर बनाया जा रहा है। इसमें कुल 121 फ्लेट का निर्माण प्रस्तावित है। प्रोजेक्ट का निर्माण प्रवीण गर्ग निवासी कविनगर, गाजियाबाद और उनके बेटे शाश्वत गर्ग निवासी ऊषा कालोनी कुल्हान किरसाली (देहरादून) की ओर से किया जा रहा। इसमें शाश्वत गर्ग की पत्नी साक्षी गर्ग भी शामिल है। प्रोजेक्ट में शाश्वत के साले उत्तर प्रदेश के हापुड़ विवेक विहार निवासी कुशाल गोयल व सुलभ गोयल भी पार्टनर हैं।

यह प्रोजेक्ट वर्तमान में बकराल गांव मसूरी रोड पर सात मंजिला बिल्डिंग के रूप में है। रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी उत्तराखंड (रेरा) ने आरकेडिया हिलाक्स के नाम से गाजियाबाद की गोल्डन एरा इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड को पंजीकृत प्रमाण 16 अक्टूबर-2017 को जारी किया था। शिकायतकर्ता के अनुसार उन्हें पता चला कि जिस जमीन पर आरकेडिया हिलॉक्स का निर्माण हुआ है, उस पर गोल्डन एरा इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड के डेवलपर्स व डायरेक्टर ने विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी बैंकों व वित्तीय संस्थाओं से ऋण लिया हुआ है। बताया गया कि यह ऋण निवेशकों के नाम से फर्जी दस्तावेज बनाकर लिया गया है। आरोप है कि इस प्रोजेक्ट में जिन लोगों के फ्लैट की रजिस्ट्री हो गई है, उन फ्लैट पर भी विभिन्न नामों से करोड़ों रुपये का ऋण बिल्डर की ओर से लिया गया है, जबकि फ्लैट मालिकों से पूरा भुगतान लिया जा चुका है। गोल्डन एरा फर्म भी गर्ग परिवार की ही है। अब गर्ग परिवार करीब एक माह से गायब है। जिससे फ्लैट खरीदारों के आगे भविष्य को लेकर धुंधलका छा गया है।

इन पर दर्ज हुआ मुकदमा
शाश्वत गर्ग, उनकी पत्नी साक्षी गर्ग, पिता प्रवीण गर्ग, मां अंजली गर्ग, रिश्तेदार अतुल गर्ग (राजनगर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश), शाश्वत का साले सुलभ गोयल व कुशाल गोयल (हापुड़), स्टेट बैंक आफ इंडिया राजपुर देहरादून के अधिकारी एवं कर्मचारी, पिरामल दिवान हाउसिंग फाइनेंस कापरोरेशन के अधिकारी व कर्मचारी राजपुर रोड।

17 अक्टूबर से परिवार सहित लापता है बिल्डर शास्वत
बिल्डर शाश्वत गर्ग, पत्नी साक्षी, पिता, मां और बेटे के साथ 17 अक्टूबर से लापता हैं। वह परिवार के साथ 16 अक्टूबर को अपने ससुराल हापुड़ थे और 17 अक्टूबर की दोपहर वहां से देहरादून के लिए निकले थे। वह दो कार में थे। उनके साले सुलभ गोयल ने हापुड़ कोतवाली में जीजा व उनके परिवार के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई हुई है। इसके बाद रेरा ने गर्ग के दून में एक अन्य प्रोजेक्ट इंपीरियल वैली में प्लाट की बिक्री पर रोक लगाने के आदेश किए हुए हैं। हालांकि, अब मामला खुला तो पता चला कि मसूरी रोड की आवासीय परियोजना के नाम पर गर्ग परिवार करोड़ों हड़पकर फरार हुआ है।

इससे पहले परिवार सहित लापता चल रहे देहरादून के बिल्डर शाश्वत गर्ग के इंपीरियल वैली (प्लॉटेड डेवलपमेंट) प्रोजेक्ट पर रेरा ने रोक लगा दी थी। जिसमें कहा गया कि अग्रिम आदेश तक परियोजना में न तो कोई प्लॉट बेचा जाएगा और न ही खरीदा जाएगा। रेरा के प्रभारी अध्यक्ष अमिताभ मैत्रा ने यह रोक परियोजना में 40 लाख रुपये का निवेश करने वाले कमल गर्ग की शिकायत पर लगाई। ताकि बिल्डर के लापता होने की स्थिति में खरीदारों और परियोजना में बुकिंग कराने वालों का अहित न हो सके।

रेरा से प्राप्त जानकारी के मुताबिक बिल्डर श्वाश्वत गर्ग ने असगर टेक्सटाइल नाम की फर्म से थानो में इंपीरिल वैली प्रोजेक्ट शुरू किया था। इस फर्म में बिल्डर की पत्नी साक्षी गर्ग भी पार्टनर हैं, जबकि एक अन्य पार्टनर के रूप में विकास ठाकुर नाम का व्यक्ति शामिल है। प्लॉटेड डेवलपमेंट की इस परियोजना का रेरा रजिस्ट्रेशन अप्रैल 2025 में कराया गया था। परियोजना की पावर ऑफ अटॉर्नी शाश्वत ने विकास ठाकुर को दे रखी है।

बिल्डर शाश्वत गर्ग के लापता होने के बाद कमल गर्ग नाम के व्यक्ति ने रेरा में शिकायत दर्ज कराई थी कि, चूंकि प्रोजेक्ट की पावर ऑफ अटॉर्नी विकास के नाम है, तो वह प्लॉट बेच सकते हैं। उन्होंने भी परियोजना में 40 लाख रुपये लगा रखे हैं। ऐसे में बिल्डर शाश्वत को लेकर तस्वीर साफ होने तक परियोजना पर रोक लगाई जाए। इसी क्रम में रेरा अध्यक्ष अभिताभ मैत्रा ने परियोजना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई।

शिकायत के प्रमुख बिंदु
-प्रार्थियों का कहना है कि 14 मार्च 2014 को अतुल गर्ग और एम/एस गोल्डन एरा इन्फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड के बीच भूमि सहयोग करार हुआ था, जिसमें कुठाल-गेट (मसूरी रोड, बकराल गांव) के कई खसरा नंबर शामिल थे—कुल क्षेत्रफल लगभग 7,296 वर्ग गज बताया गया है।
-18 मार्च 2015 को गोल्डन एरा इन्फ्राटेक के कुछ निदेशकों ने शास्वत गर्ग को अपना मुख्तारनामा दिया था, जिसका पंजीकरण सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में दर्ज बताया गया है।
-इसी प्रकार अतुल गर्ग द्वारा भी शास्वत गर्ग को मुख्तारनामा देने का एक अन्य पंजीकरण 23 मार्च 2015 व 28 अगस्त 2017 को दर्ज होने का उल्लेख है।
-शिकायत में यह भी कहा गया है कि परियोजना को रेरा उत्तराखण्ड द्वारा 16 अक्टूबर 2017 को आरकेडिया हिलॉक्स नाम से पंजीकृत प्रमाणपत्र प्रदान किया गया था।
-प्रार्थियों का आरोप है कि गोल्डन एरा इन्फ्राटेक तथा उससे जुड़े निदेशकों/डेवलपरों ने फर्जी व कूट रचित दस्तावेज़ों (जैसे बिल्डर-बायर एग्रीमेंट, अलॉटमेंट लेटर, विक्रय अनुबंध आदि) के आधार पर लोगों से धन लिया, लेकिन कई खरीदारों को अब तक रजिस्ट्री नहीं दी गई।
-तहरीर में यह भी आरोप है कि कई फ्लैटों पर वर्ष 2016–17 में अन्य व्यक्तियों के नाम पर बैंक व वित्तीय संस्थाओं से ऋण लिया गया, जबकि वास्तविक खरीदारों ने पूर्ण भुगतान कर दिया था।
-इसके अलावा गोल्डन एरा इन्फ्राटेक तथा संबंधित लोगों द्वारा एमडीडीए देहरादून को आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किए गए, जिसके कारण रेरा द्वारा रजिस्ट्री रोक दी गई। प्रार्थियों का दावा है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि फर्जी हस्ताक्षरों और जाली दस्तावेज़ों के आधार पर किए गए कथित लेन-देन की पोल न खुले।
-तहरीर में यह भी बताया गया है कि कुछ बैंक/वित्तीय संस्थाओं के अधिकारियों-कर्मचारियों ने डेवलपरों के साथ कथित मिलीभगत कर फर्जी काग़ज़ तैयार किए और अनुचित लाभ प्राप्त किया।
-प्रार्थीगणों ने कहा है कि उपरोक्त सभी लोग एक संगठित गिरोह की तरह कार्य कर रहे थे, जिसने कई मासूम नागरिकों तथा सेना के कार्मिकों को भी धोखे का शिकार बनाया और करोड़ों रुपये का कथित दुरुपयोग किया।

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