सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है कोर्ट ने कहा है कि जुर्म कितना भी खौफनाक क्यों ना हो, दोषी की मौत की सजा को कम किए जाने के कारणों पर जजों को विचार करना चाहिए अदालत का यह फैसला सात साल की एक बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में आया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोनों अदालतों से अलग रुख अपनाया है न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने पप्पू का बलात्कार और हत्या के लिए दोषी साबित होना तो सही ठहराया लेकिन यह भी कहा उसकी मौत की सजा को कम जिए जाने के कई कारण है जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता लेकिन न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने पप्पू की मौत की सजा को रद्द करते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई और कहा कि यह सजा 30 साल कारावास की होगी l इसके अलावा इन 30 सालों में भी उसे समय से पहले ना तो जेल से रिहा किया जाएगा न कोई छूट दी जाएगी इस फैसले को मौत की सजा के संबंध में एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला माना जा रहा है दुनिया के कम से कम 100 देशों ने इसे अपनी न्यायिक व्यवस्था से पूरी तरह से हटा दिया है करीब 50 देशों में अभी भी यह सजा मौजूद है इनमें भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, अमेरिका, सऊदी अरब और जापान जैसे देश शामिल हैं l एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय भारत में 350 से ज्यादा ऐसे अपराधी हैं जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई हैl